विनोद बाबू से
मिलकर बहुत
आनंद आया।एक
चाय के
साथ ही
बीच बीच
में कुशल
अधिकारी की
तरह वे अपना काम निबटाते
रहे।फोन-फान
पर बतियाते
रहे।बातों के बीच पता लगा,
उनका ससुराल
चित्तौड़ में
हैं।कुछ साल
पहले अपनी
रुचिवश वे
दो साल
ब्यावर के
एक कोलेज
में समाजशात्र
पढ़ा चुके
है।फिर वाया
पुलिस की
नौकरी वे
आर।टी.एस।
में चयनित
होकर यहीं
चित्तौड़ में
नायब तहसीलदार
बने ।हाल
में मिले
प्रमोशन के
बाद अब
ट्रांसफर की
बारी में
हैं।नेट उत्तीर्ण
विनोद जी
बहुत उत्साही
किस्म के
व्यक्ति हैं
मगर सरकारी
नौकरी के
चलते अपनी
तमाम इच्छाओं
के मर
जाने या
दब जाने
से दुखी
नज़र आये।कुछ
बातें उन्होंने
मेरे बारें
में भी
बहुत उत्सकुता
के साथ
पूछी।मुझे उनमें एक अधिकारी के
तरह
टेंट नज़र नहीं आये।
आज घंटे भर
की मुलाक़ात
हमारी रेनू
दीदी से
भी हुयी
जो कुछ
महीनों से
डॉ.रेनू
व्यास हो
गयी है।उनके
शोध को
किताब रूप
में छापा
जा रहा
है।वो भी
शायद उदयपुर
के अंकुर
प्रकाशन द्वारा।किताब
अभी आना
बाकी है।उत्साह
बरकरार है।असल
में मैं
फोन का
बिल जमा
कराने गया
था।तय समय
से देर
तक ख़त्म
होने की
आदत वाले
सरकारी विभागों
के लंच
के ख़त्म
होने तक
रेनू दी
के पास
बैठ आया।आकाशवाणी
चित्तौड़ पर
एक ही
फिल्म से
मेरे पिछले
दिनों प्रसारित
एक प्रोग्राम
में गाइड
फिल्म पर
बात चली।उन्होंने
ने बहुत
विस्तार से
फिल्म पर
अपना नज़रिया
प्रकट किया
वो भी
पूरे रुचिकर
ढंग से।वे
मानती है,
गाइड जैसी
फिल्म में
पहला आधा
भाग वहीदा
रहमान के
अभिनय को
देखने के
लिए है
बाकी आधा
भाग देवानंद
की एक्टिंग
से मुखातिब
होने के
लिए।अपने पसंद
की फ़िल्में
गिनाती हुई
रेनू दी
प्यासा,दो
बीघा ज़मीन,तीसरी कसम
तकभी हो
आ गयी
।आज ही
जाना ,रेनू
जी रेखाचित्र
भी बनाती
है।ये अलग
बात है
उन्होंने बहुत
सालों से
रेखाचित्र बनाए नहीं।कई बार वे
फिल्म में
अभिनेत्री की आँखें देखने के
लिए घंटों
तक फिल्म
देखती है।आँखें
देखते समय
नाक तक
भी उनकी
नज़र नहीं
जाती इतने
ध्यान के
साथ।वे कहती
है,लिखने
के काम
में हमेशा
बहुत ध्यान
चाहिए होता
है।श्रमसाध्य और समयसाध्य काम है।कभी
कभी लिखने
के वक़्त
बुखार आने
जैसा लगता
है।पसीना तो
आता ही
है।फिर चाहे
वो आलेख
हो या
फिर कविता
लेखन।उनके इस विचार को तब
और पुट
मिला जब
दिनकर के
संस्मरण पढ़ते
समत दिनकर
द्वारा भी ऐसा ही कुछ
लिखा मिला।
आज की डायरी
में एक
साम्य ये
भी है
,रेनू जी
और विनोद
जी दोनों
एक ही
बेच के
प्राशासनिक अधिकारी हैं।युवा है।बड़ी सोच
के साथ
नौकरी में
आए हैं।पर्याप्त
उत्साह है।मुझे
आज की
दिनचर्या में
दोनों ने
बहुत अपील
किया है।