हम एक ऐसे
दौर में
जी रहे
हैं जहां
विभिन्न ललित
कलाओं को
पेशे के
तौर पर
अपनाना और
उसमें अपनी
ज़मीन तलाशते
हुए करिअर
बनाना कम
जोखिमभरा नहीं
है।अमूमन घराने
के युवाओं
और परिवारजन
को ही
आगे बढ़ने
के समुचित
अवसर मिलते
देखे गए
हैं। गैर-कलावादी परिवारों
के नवोदित
साथियों के
लिए रास्ते
इतने आसान
नहीं है।रियाज़-तपस्या के
साथ ही
अपने सफ़र
में नेटवर्किंग
और मेनेजमेंट
का ज़माना
है।कोई अपने
आपको इस
दौर के
हिसाब से
ढ़ाल
के चले तो ही ठहराव
हो पाता
है।बाकी आप
जानते हैं
कि कई
मित्र मुम्बई
की ख़ाक
छानने के
बाद फिर
से अपने
गँवई परिवेश
में लौटते
देखे ही
जाते हैं।ये
समय बड़ा
मारकाट है
फिर भी
एक बात
के प्रति
तो आशान्वित
हुआ ही
जा सकता
है कि
मेहनती और
तपस्वी युवाओं
के लिए
आगे की
प्रगति हेतु
कुछ ज़मीन
हमेशा सुरक्षित
होती ही
है।ठेठ कस्बों
से निकल
कलाकार अपने
पेट की
ख़ातिर मुम्बई-दिल्ली-पुणे
की तरफ
हो चले
हैं।ये मामला
आज से
ही नहीं
सालों से
चला आ
रहा है।
इसी समय की
उपज के
रूप में
हम यहाँ
एक परिश्रमजीवी
युवा साथी
मुकेश शर्मा
की चर्चा ज़रूरी हैं। वैसे
मुकेश जैसे
युवा के
मुरीद लगातार
बढ़ने के
पूरे चांस
हैं इस
बात का
ख़ास आधार
इस युवा
चित्रकार का
सादा व्यवहार
और योग्यता
ही
है। चित्तौड़गढ़,राजस्थान के बेगूं
क़स्बे में
छोटे से
गाँव पाछुन्दा
से निकला
ये दोस्त
मुंबई में
रहकर अपने
मुकाम की
तरफ बढ़
रहा है।शुरुआती
पढ़ाई-लिखाई
के बाद
मुकेश ने
चित्रकारी की विधिवत शिक्षा ली।
कई बार
ऐसा भी
हुआ मुकेश
को इस
कला के
जुड़े कई
बड़े गुरुओं
से सीखने
का भी
मौक़ा मिलता
रहा। स्पिक
मैके जैसे
छात्र आन्दोलन
की गुरुकुल
छात्रवृति योजना हो या फिर
इसी आन्दोलन
के राष्ट्रीय
अधिवेशन हों।
मुकेश ने
सदैव अवसरों
को ठीक
से साधा
है।काम में
तल्लीनता इस
मित्र खासियत
है।
एक आदमी अगर
अपने सफ़र
में ये
बात नहीं
भूले कि
उसकी ज़मीन
कहाँ या
जड़े कहाँ
है तो
उसकी प्रगति
में बहुत
सहूलियत हो
जाती है।
यही सच
मुकेश के
साथ भी
है। उसे
अपने आगाज़
और अंजाम
का पूरा
आभास है।
ये ऐसा
कलाकार है
जिसे अपनी
परम्परागत चित्र शैलियों के आभास
के साथ
ही मॉडर्न
आर्ट का
भी महत्व
मालुम है।
मुम्बई में
रहकर भी
ये आदमी
अपने गाँव
के हालात
और धूल
को भूलता
नहीं है।
हालांकि उसकी
प्रगति के
लिए मुम्बई
ज़रूरी है
मगर मेरा
मानना है
कि यथासमय
अपने कस्बाई
इलाके में
उसके फेरे
भी कुछ
कम ज़रूरी
नहीं है।
उसका यहाँ
आना कब
यहाँ के
ही किसी
दूसरे युवा
के लिए
प्रेरणा का
पुंज साबित
जाए पता
नहीं। हमारी
तमाम शुभकामनाएं
इस मित्र
के साथ
है। कई
बड़े समारोह
और आयोजनों
में अपने
कृतियों के
प्रदर्शन करके
मुकेश अपने
रास्ते पर
लगातार बना
हुआ है।
आपको बताना ज़रूरी
है कि
सन दो
हजार आठ
से ही
राजस्थान के
सभी संभागीय
मुख्यालयों सहित मुकेश गुजरात, महाराष्ट्र,
मध्य प्रदेश
में अपने
समूह और
एकल शो
कर चुका
है। इतिहास
और पेंटिंग
का विद्यार्थी
मुकेश यदा-कदा विभिन्न
सामाजिक संस्थाओं
के केम्प
के ज़रिये
इसी कला
को नि:स्वार्थ भाव
से दूसरों
को भी
सीखा रहा
हैं। गौरतलब
है कि
मुकेश मुम्बई
की भविष्य
में भी
कई गैलेरियां
में शो
करने की
योजनाएं है।
योजनाएं मुकाम
तक पहुंचे,
ऐसी शुभकामनाएं
है।