अनौपचारिक रिपोर्ट:
चित्रांकन -विजेंद्र जी |
संचालन आकाशवाणी के आकस्मिक उदघोषक और वकील अब्दुल
सत्तर साहेब ने सम्भाला.उन्हें बहुत दिन बाद कविता पाठ करते देखा.उनका गला और छंद
एकदम मोह लेते हैं.वकिलगिरी में उन्हें अब उतना वक़्त नहीं मिलता कि कविता ठीक से
और सतत कर सके.एक-एक रचना पढ़ने का आदेश और गुंजाईश ही थी.श्रोता के अनुपात में
सात-आठ गुने कवि थे.बूढ़े भी युवा भी.कवयित्री केवल एक पूरण रंगस्वामी.जयसिंह
राजपुरोहित मेवाड़ वंदना गाकर नाईट ड्यूटी का कहके चले गए.रेलवे में हैं.हम भी क्या
कहते जाने दिया.एक युवा मनोज मक्खन थे ले में थे मगर क्या पढ़ा याद नहीं रहा.वे भी
इंडियन आयल डिपो में हैं पढ़ते ही निकल लिए.ये अलग मसला है कि बाकी बचे हों ने आखिर
तक जल्दी निकल लेने वालों पर भरसक कटाक्ष किए.सत्यनारायण जी व्यास अध्यक्षता करके
फँस गए उनका कविता पाठ जो आखिर में हुआ.बाकी सभी पने आप को विशिष्ट अतिथि ही समझ
कर बैठे रहे.किसी के सिरहाने मसनद लगा था कोई झूले में तो कोई रीड की हड्डी में
दर्द के बहाने से कुर्सियों में जा धंसा.एकदम फ्री स्टाइल गोष्ठी.संचालन को छोड़कर
सब अनौपचारिक.लम्बी सूची में चंदेरिया के शाइर अजनबी साहेब थे.किले वाले मुरलीधर
भट्ट थे,मस्ताना
जी थे.रामेश्वर लाल पंड्या थे.देवीलाल दमामी थे,और तो और भरत व्यास थे.नन्द
किशोर निर्झर थे.रमेश मयंक थे.अमृत वाणी तो थे ही.बहुत सारे नए कवियों को देखने और
सुनने के बाद भी चित्तौड़ में ढ़ंग के रचनाकारों की मेरी अपनी सूची में एक भी नाम
घटा-बढ़ा नहीं.
निर्झर साहेब का गला अच्छा है राजस्थानी में अच्छे
मुक्तक पढ़े.बेहतर छंद थे मगर अभी भी उनकी दिशा साफ़ है इसमें शक है.कई लोग कविता से
बहुत दूर का कुछ सुना गए.उनके गुनाह मुआफ.अरे मैं तो भूल ही गया एक अध्यापक डॉ
धीरज जोशी भी आये.युवा हैं,नवाचारी हैं.इंटरनेटी शगल से वाकिफ और इसके पैरोकार
हैं.पहली बार मिले.कविता अच्छी थी मगर पाठ अच्छा नहीं था.लोग भूल जाते हैं कि पाठ
से ही कविता निखर जाती है कई बार.एक कोई राजेश राज थे अभी तक नाम ही सुना था पहली
बार उनकी गाई पैरोडी सुनी.राजनीति पर कटाक्ष थे मगर उसे कविता कहना कविता को गाली
देना है.
मैंने दूजे कवियों की तरह कविता संगोष्ठी के मेजबान
और मेजबान के आलिशान घर की तारीफ़ में एक भी पंक्ति नहीं कही.अपनी कविता पढ़ी.सिर्फ
कविता पढ़ी.आदरणीय-फादरनीय का कोई झमेला नहीं पाला.सभी परिचित थे बस नमस्ते किया और
शुरू.नाईट ड्यूटी का बहाना कर अपने कविता पाठ के तुरंत बाद घर नहीं चला आया.दूजों
को सुना भी.दाद दी.हामी भरी.अजानकारों पर पर मन में हँसा भी.कुलमिलाकर जाजम पर
बैठने का आनंद आया.जिनके गले अच्छे थे उनसे ईर्षा भी हुयी.जिनकी कविता बहुत मारक
थी उनसे तो ईर्षा होना लाज़िमी ही था.कुछ ने नयी के नाम पर अपनी प्रतिनिधि रचना ही
सुना डाली.सोचा आकर वक़्त बर्बाद किया.मुझे उन पर दया आयी जो नया सुनाने का साहस
नहीं जुटा पाए.
शुक्रिया कहने और चापलूसी से लबरेज अमर वाक्यों में
बहुत फर्क है.मेजबान का शुक्रिया तो कई कवि उन पर कविता लिखकर पहले ही कर चुके
थे.हालाँकि उन कवियों के दिशा भ्रमित होने पर मुझे कुछ नहीं कहना.वैसे औपचारिक
आभार किसी एक ने दिया था.एक बात और कि शुक्रिया वे लोग कहे जिन्हें कविता पढने का
मंच नहीं मिलता या फिर वे पढ़ने के लिए छटपटाते हैं.असल में शुक्रिया तो मेजबान को
कहना चाहिए जिनके घर कवियों ने मजमा जमाया.
औपचारिक रिपोर्ट:
अब कविता लिखने के नाम से कोई जेल नहीं जाता। किसी
की कविता सुनकर राजनीति में बदलाव नहीं आता और हम देख रहे हैं कि कविता के विषयों
में हमारे देश के बहुत ज़रूरी मुद्दे अब भी गायब ही हैं। कविता करना पेटभर खाने के
बाद की डकार की मानिंद हो गया है। हमारे सामने की ये बेरोजगारी, पूंजीवाद, जातिवाद, आतंकवाद, भुखमरी, साम्प्रदायिकता जैसी बड़ी
मुश्किलें अब कविता के इस वर्तमान परिदृश्य को सीधे-सीधे चिढ़ा रही है।आदमी अपने
स्वार्थ के खातिर लगातार टूट रहा है। हमने देश की गुलामी और फिर इस आज़ादी के
अंदाज़े खो दी हैं। जाने कब तक ये आदमी गिरेगा। इस दौर में हमारे कहने और करने में
लगातार फरक आता जा रहा है। भौतिकता की अंधी दौड़ में हम बस भागे जा रहे है। एकदम
बिना उद्देश्य के।
ये विचार समग्र रूप से निकल आये तब जब शहीद दिवस की
पूर्व संध्या पर चित्तौड़गढ़ की मधुवन कोलोनी में एक काव्य गोष्ठी संपन्न हुयी।
आयोजन में मुख्य अतिथि टीकमगढ़ के रचनाकार लाल सहाय, विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद डॉ. ए.एल.
जैन और महेंद्र पोद्दार थे। अध्यक्षता साहित्यकार डॉ. सत्यनारायण व्यास ने की.
नन्दकिशोर निर्झर की मेवाड़ी में की गयी सरस्वती वंदना और कुछ मुक्तकों से गोष्ठी
का आगाज़ हुआ। इससे पहले मेजबान डॉ ए. बी. सिंह ने सभी कवियों और अतिथियों का
स्वागत किया।
अनौपचारिक माहौल में शुरू हुयी संगोष्ठी में आगंतुक
अतिथि लाल सहाय ने तहत में राजनैतिक माहौल और लगातार छीजती मानवीयता पर कुछ गज़लें
कही। चंदेरिया के शाइर अब्दुल हकीम अजनबी ने गंगा-जमुनी तहजीब से जुड़े शेर पढ़कर
समा बाँध दिया। इस बीच कई युवा कवियों ने भी पाठ किया। भरत व्यास ने 'एक पत्ता', मनोज मख्खन ने 'मन के भाव' ,राजेश राज ने फ़िल्मी
गीतों पर पैरोडी, माणिक ने 'वक़्त का धुंधलका' पूरण रंगास्वामी ने 'प्रेम में ईर्षा', डॉ. धीरज जोशी ने 'खुद को जानो' ए.के. डांगी ने 'दोस्ती' शीर्षक वाली कवितायेँ सुनायी। रामेश्वर राम ने
राजनैतिक माहौल में देश को बचाने और आम आदमी की पीड़ा को समझने की ज़रूरत पर जोर
दिया। इस मौके पर राजस्थानी के गंभीर गीतकार जयसिंह राजपुरोहित ने अपनी प्रतिनिधि
रचना मेवाड़ वंदना जिससे गोष्ठी में जान आयी।
संगोष्ठी में कुलमिलाकर कवियों ने पीड़ित मानवता के
पक्ष में आवाज़ लगाती कविताओं का पाठ किया इस तरह एक बार फिर से अपनी कलमों के
जनपक्षधर होने का संकेत दिया है। समय के समीकरण में उलझे आदमी को उकेरती कविता से
डॉ. रमेश मयंक ने और कन्याभ्रूण ह्त्या पर अब्दुल ज़ब्बार ने बहुत बेबाकी से पाठ
करके गोष्ठी को सार्थकता दी। डॉ. ए. बी. सिंह
ने भी अपने चयनित दोहे पढ़ते हुए 'हाथ में कुचरनी' करके एक कविता सुनाकर समाज में व्याप्त विसंगतियों
को इंगित किया। उनके दोहों में श्रोताओं को मुश्किलों के साथ ही कठिनाइयों से
सुलझने के संकेत भी मिले। कवि अमृत वाणी ने 'नाई की दूकान' और सामूहिक विवाह सम्मलेन' नामक कविताओं से हास्य बिखेरा।
सभा का संचालन करते हुए उदघोषक और एडवोकेट अब्दुल सत्तार ने भी बेटियों और
बुजुर्गों के नाम कुछ छंद तरन्नुम में पढ़े।
आखिर में वरिष्ठ कवि डॉ सत्यनारायण व्यास ने 'कविता के विरोध में'
, 'टाइम नहीं'
, 'जीवन ढोता आदमी'
सुनाकर इस दौर में
रचनाकर्म कर रहे तमाम रचनाकारों को चुनौती दी कि देश में हालात बदतर है और कविता
नाकाम है। दूसरी तरफ मेट्रो शहरों के
दाम्पत्य जीवन में तेज़ी से आ रहे बदलावों की तरफ भी समय रहते संकेत किया है। डॉ
व्यास ने कविता में आज के आदमी के दिशा भ्रमित होने का खुलकर चित्रण किया। आखिर
में डॉ. ए. एल. जैन ने संक्षिप्त उदबोधन भी दिया। गोष्ठी में जे.पी. भटनागर,
डॉ. जयश्री व्यास,
शेखर चंगेरिया
सहित कई श्रोता मौजूद थे।