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Tuesday, January 28, 2014

29-01-2014

चित्रांकन-अमित कल्ला,जयपुर 

  1. डिनर पार्टी इतनी फ़ैली हुयी थी कि पहचान के लोग मिले और अपनों को ढूंढें बगैर खा-पी के लौट गए
  2. पहनी हुयी चूड़ियां खोलना पहनाने से भी ज्यादा मुश्किल काम है (आतमज्ञान)
  3. शब्दों के जमाव-उठाव से भी देशभक्ति की फसल बोई-उगाई-छंटाई-कटाई जा सकती है(आतमज्ञान)
  4. 'आयोजनों के मार्फ़त मंच संचालक की दुकानदारी' यह भी व्यंग्य का एक विषय संभव है
  5. पानी घटकाटे हुए मंच पर शब्द कौशल दिखाना और वो भी कुहरे,फुंहार,ठिठुरन के बीच मंच साधने में नानी याद आ जाती है(कई सारी दीर्घ शंकाओं के बीच कई बार लघु शंकाएं)
  6. खुद का नाम बोले बगैर मंच संचालक दो घंटे में कोई घंटाभर बोल गया,गज़ब (यशकामी संचालक होता तो आते ही और जाते हुए भी जय हिन्द के ठीक पहले अपना नाम सलीके और तरकीब से चपेक जाता)
  7. आयोजनों के सूत्रधार को आयोजन में आये-गए तमाम लोग याद रखकर 'शुक्रिया' नहीं कहते हैं और इस संकटकालीन घड़ी के लिए समझदार सूत्रधार हमेशा तैयार रहता है (आतमज्ञान)
  8. ''भाण्ड-भसाई और मंच संचालन में बहुत बारीक अंतर होता है''(आतमज्ञान)
  9. मंच संचालक बटन वाला भोंपू नहीं होता जिसे जब चाहो दबा दो और वो चालू हो जाए
  10. अशोक चक्रधर को पद्मश्री:उन्हें मिल गया मतलब अब सभी को मिला हुआ मान लिया जाए
  11. नरेन्द्र दाभोलकर को पद्मश्री घोषित हुआ है:काश इस सम्मान के बहाने नरेन्द्र जी के जीवन की असल मंशा हम सब समझ सकें
  12. स्पिक मैके का दूसरा इंटरनॅशनल कन्वेंशन जून माह,2014 में आईआईटी मद्रास में होगा
  13. हमने अपनी दाढ़ी का मुंडन कर दिया,जीमणा करने का कोई प्रोग्राम योजना का हिस्सा नहीं है (यह सूचना जनहित में जारी है )
  14. बेटी अनुष्का को हम जितना नहीं हँसा पाते उससे से हजार गुना तो ये साला 'छोटा भीम' लौटपोट कर देता है ('छोटा भीम' हमारे लिए बड़ी सहूलियत है )
 
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