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Thursday, December 26, 2013

26-12-2013


  • एक नामालूम दोस्त से मुलाक़ात हुयी उसे केवल वही मालुम है जो उसने टीवी पर देखा,मतलब साफ़ है रेडियो-किताब-बेहतर संगत-गुरु-बड़भाई-पत्र-पत्रिका को वो भी बहुतेरों की तरह गैर ज़रूरी समझता रहा,अजीब गफ़लत में हैं भाईलोग, हिंदी सिनेमा में इतना उलझा रहा कि अब जड़ हो गया है, उसे मालुम ही नहीं कि इधर स्थापितों की बखिया उधेड़ती कई डोक्युमेंट्री फिल्में भी आ चुकी है. गफ़लत कायम रही तो व्योपारी अपना व्यापार आराम से कर पाएगा।
  • खुद के बारे में में जोर देकर सोचा तो लगा आदमी दोगला है दूजों को पढ़ने को कहता है, खुद कम पढ़ता है इसलिए तो परीक्षा में अलका सरावगी के 'समय-सरगम' का केंद्रीय मुद्दा आगे बैठी मैडम से पूछा-पाछी करके धक्का लगाना पड़ता है.बार-बार अंतर्ध्यान होने की कसम खाने वाला आदमी लगभग सामने ही रहता है.शील और सुचिता विषय का प्रखर विद्वान वक्ता चुपके से अश्लील फिल्मों पर वक़्त खरचता है.भीतर से डरपोक है मगर बाहरी गुर्राहट कायम है.स्त्री विमर्श का पैरोकार है कभी-कभी यौनिक गालियां दे मारता है.आसन-प्राणायाम की वकालत जारी है मगर आपा खोने में देर नहीं लगाता। समन्वयकारी होने की सलाह देता है मगर बेमौसम बैलेंस खो देता है.इसी दोगलेपन से परेशान है आदमी। कभी-कभी लाइलाज बीमारी से ग्रस्त हो जाता है आदमी।जानकारी के मुताबिक़ दोगलापन लाइलाज तो नहीं ही है। 
  • सम्पादकीय विवेक असरकारक नहीं रहता है तो लगता है साथी छपास के रोगी टाईप के संवाददाता गाय-बकरी-स्कूल-दीपावली पर निबंध लिखने और किसी पत्र-पत्रिका के हित ख़बर लिखने में फर्क समझना भूल जाते हैं.खैर दीगर मुद्दा यह है कि इधर तम्बू में बच्चे मर रहे हैं.आदमीजात घर-गांव जाने से डर रही है.अलाव पर ज़िंदगी टिकी हुयी है.मानवता पीड़ा में है और हम अपने 'व्यक्तिगत' से ही बाहर नहीं आ पा रहे हैं.यह 'पटाखें छोड़ने' का वक़्त तो कम से कम नहीं ही है.
  • कनक भैया के साथ चारेक घंटे की गपशप पूरी हुयी तो खुद को एक साथ बहुत भरा हुआ और हल्का अनुभव कर रहा हूँ, अपनों के साथ लम्बी गपशप इस भौतिकतावादी दौड़ में बड़ा उपहार है.गपशप का मतलब नगर के स्वामी से लेकर आका टाईप के तमाम लोगों पर खुली चर्चा।अकादमी सम्मानों में धांधली से लेकर स्वयं प्रकाश जी,अशोक कुमार पांडेय की प्रकाश्य किताबों पर होती हुयी रेणु दीदी के इंटरव्यू तक चर्चा।मित्रों की गुवाहाटी या त्रिवेंद्रम यात्राओं से लेकर नगर की संस्थाओं की पच्चीस साला प्रगति पर टिक्का-टिप्पणी।
  • इस मध्यमवर्गीय जीवन में सबसे मुश्किल काम है मकान बनाना।इधर समय अच्छा चल रहा है और मित्रों के सहयोग से हमने भी चित्तौड़गढ़ नगर परिषद् क्षेत्र में किले के पीछे गोपालनगर से सिरोड़ी रोड़ पर 2000 वर्ग फिट (Corner,East-North Facing,30 Fit Road, Front Side Garden)पर अपने नाम की रजिस्ट्री करा ली है.सवा पिताजी ने दिया,सवा हमने मिलाया।सवा सबसे जाँदीकी मित्र ने दिया।आधा साले साहेब ने दिया।(साहेब लिखना बेहद ज़रूरी मुद्दा है). आधा जैन साहेब ने दिया।दो का लोन लेना है.लोन लेने तक कोई सहायता देना चाहे तो हम बुरा नहीं मानेंगे।निविदा अभी खुली है.प्लॉट से किले की लाखोटिया बारी साफ़ दिखती है जिसमें से महाराणा उदय सिंह जी को बनवीर से बचाने के लिए पन्ना ने बाहर भेजा था.यह अलग बात है कि लाखोटिया बारी से मेरा मकान साफ़ नहीं दिखता होगा।सारा शहर किले के मुख्य हिस्से में बसा है हमने पिछवाड़ा चुना है.यहाँ बस्तीनुमा बसावट तो है मगर शायद हमारा आशियाना बनने तक बसावट बड़ा फैलाव ले लेंगी।आशावादी हैं.कहना यह था कि कुलमिलाकर अपना भी एक प्लॉट हो गया.
  • शिक्षकों के लिए बीएड पाठ्यक्रम में 'पोषाहार निर्माण' के पाठ भी जोड़े जाने चाहिए।(वैसे अच्छी खबर यह भी है कि राजस्थान के पंचायतीराज मंत्री श्री गुलाबचंद कटारिया ने आज कहा है कि शिक्षकों को पोषाहार प्रक्रिया से मुक्त रखने हेतु ग्राम पंचायत स्तर पर दो लिपिक की भर्ती होगी।)
  • आदतें खराब है.स्पिक  मैके ने बिगाड़ दिया है.कंसर्ट बहुत-बहुत दिन में ही सम्भव हो पाते हैं.सुनना लत हो गयी है.पढ़ते समय शास्त्रीय वादन संगत में ज़रूरी हो गया है.गायन नहीं चलेगा क्योंकि कान में शब्द पड़ते ही पढ़ने में बाधा सी अनुभव होती है.आँखों के सामने अगले दिन का पेपर की तैयारी है कानों में उस्ताद बहाउद्दीन डागर का रूद्र वीणा पर बजाय राग अद्भुत कल्याण।वादन उन्ही का सुनता हूँ जो स्थापित कलागुरु हैं.एक भी गलत स्वर मेरी लाया बिगाड़ सकता है.सतर्कता ज़रूरी है.
 
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