- कविता लिखना इतना भी आसान नहीं है जितना यह 'ज़मानेभर' के कवि समझने लगे हैं मगर आलेख लिखने में तो पड़दादी याद आ जाती है।
- दिनों से अटके काम की तरह एक आलेख जो अभी पूरा हुआ मणो(तोलने की देहाती इकाई )तसल्ली दे गया।
- अरसे से फोन पर दूसरी तरफ से आने वाली कोई मधुर आवाज़ नहीं सुनायी दी।
- आज पुराने टाईप के दो जुगाडू आयोजकों से मुलाक़ात हुयी।एक के पाँव छुए क्योंकि वे जब से मैं जानता हूँ और बुद्धि आयी है वे मुझे निहायती शरीफ-सज्जन और सदाशय लगे हैं.दूजे की लफ्फाजी और घाघपने से मैं वाकिफ हूँ.इसलिए हाथ मिलाकर टरकाया।
- जबरन एक शीर्षक के बहाने कविताओं के छ: गुच्छे सुनाने पर अड़ जाए तो साँस अटक जाती है मगर ऐसे अड़ियल को सहने की पीड़ा आज मैंने जान ली।
- फड़ चित्रकार सत्य नारायण जी अपने इस परम्परागत काम को छोड़कर बीच में जनरेटर चलाने लग गए थे.ब्याव शादी में लाइटें लगाने लग गए थे.कभी उन्होंने मुफलिसी के दिनों में टॉकीज में फिल्मों को स्क्रीन करने के हित मशीन भी चलाई।फिर स्पिक मैके के सहारे उन्हें काम मिला अब वे कम से कम साल में कभी कभार कार्यशालाएं करके अपना गुज़ारा चलाते हुए इस कला को ज़िंदा रख्खे हुए हैं.दीवारें पोती,दीवारों पर हजारों बार हाथी घोड़े मांडे।कई मर्तबा उन्होंने शीतला माताजी पूजन के पहले माताजी के चित्र बनाए।गणगौरें बनायी।कुल मिलाकर आदमी ऑलराउंडर है. वे एक ऐसे आदमी हैं जिनमें सीधापन और टेड़ापन एक साथ मिल जाएगा।मगर दिल के ठीक हैं.उनका बेटा दिलीप इस काम को आगे ले जाएगा तो लग रहा है अब तसल्ली है।
Monday, September 23, 2013
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