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Saturday, March 30, 2013

30-03-2013

चेक ले आया।स्पीड पोस्ट करा आया।गाड़ी  की सर्विसिंग करा ली। जुकाम भरे नाक पर भाप लगा आया।कुछ जेनेरिक दवाई की खातिर पौन घंटा लाइन में खड़ा रह आया।तेरह ख़त तेरह लिफाफों में सलीके से रखकर  पोस्ट कर आया।एक भी अहसान नहीं लिया।अस्पताल के दो चक्कर, किले का एक चक्कर, गंभीरी नदी को चार बार पार किया।एक अधबने ओवरब्रिज को दसियों बार लांगा, दिन में तीस बार फोन उठाया-लगाया।पांच बार रेडियो कार्यक्रम सुने।ड्यूटी चार्ट पर नज़र फेर आया।बैजू बावरा देख ली।नींद निकाल ली।दो बार की चाय पिला दी।दाल-चावल बनाके खिला दिए।दवाइयां घोट के पिला दी।आगत को संभाल लिया।बस बर्तन सिंक में रख छोड़े हैं।अब कल माजेंगे।अब क्या बच्चे की जान लोगे।एक गिरस्ती आदमी इससे ज्यादा क्या करेगा बेचारा।
 
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