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Thursday, November 1, 2012

01-11-2012

सोने से ठीक पहले 
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चित्तौड़ में एक तिकड़ी है जिसमें मेरे अलावा डॉ कनक जैन और डॉ राजेन्द्र सिंघवी शामिल हैं। साहित्य संस्कृति के आयोजन के नाम पर तीन युवा चेहरे समझ लिजिएगा। डॉ सत्यनारायण व्यास और डॉ आनंदी लाल जैन जैसे लोगों का एक विश्वास हैं हम में। कल व्यास जी का फोन मिला कि जयपुर वाले वेदव्यास जी ने साहित्य अकादमी को लेकर चित्तौड़ में कोई आयोजन प्लान किया है। उसे अंजाम देने के लिए चर्चा करने के निमित्त आज रात साढ़े  आठ बजे से हमने रात नौ बजकर तक चर्चा की।आयोजन को लेकर वेदव्यास जी से कल मेरी बात होगी। हल्की चर्चा में हमने संभावित सहयोगी संस्थाओं के बारे में विमर्श किया।आयोजन का केंद्र जानेमाने साहित्यकार और पुरातत्वविद मुनि जिन विजय जी रहेंगे। यहाँ स्थान और संस्थाओं के नाम तय होना बाकी रहा। तिथि शायद जनवरी की शुरुआत हो।
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शाम के वक़्त योगेश कानवा जी के निर्देशन में एक कहानी की रिकोर्डिंग की ।'बंद कमरों के परिंदे' इसमें पहली मर्तबा सूत्रधार की चिरपरिचित भूमिका से अलग जाकर मैंने एक फौजी का रोल निभाया। बाकी साथियों में भगवती लाल सालवी,वृतिका सालवी,कृष्णा मरलेचा और अमित चेचाणी शामिल थे। कहानी एक कर्फ्यूग्रस्त इलाके की है।कहानी एक परेशान परिवार की है।कहानी एक बूढ़े बाबा की है जो दंगे में बेवज़ह मारे जाते हैं।कहानी एक फौजी की है जिसमें उसे पहले नसीम द्वारा गलत समझ लिया जाता है। कहानी नसीम की है जो पूरी कहानी में एक परेशान लड़की का रोल निभाती है।इस तरह अभिनय करना रूचि का हिस्सा होता जा रहा है।अब नाटक मंचन करने का मन होता है।
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घर में कल करवा चौथ है। स्कूल में एक बैठक है। कल शाम की आकाशवाणी की ड्यूटी की बुकिंग हैं।गाँव में पापा को रोज रात में बुखार आता है दिन में उतर जाता है।माँ से अब उतना तेज़ी से काम नहीं हो पाता है।गाड़ी पेट्रोल बहुत खाती है। बेटी परसों स्कूल की पिकनिक जायेगी।दोस्त अपने हाल में मस्त हैं।हर दो दिन छोड़कर एक दो कवितायेँ लिख लेता हूँ। होशंगाबाद के अशोक जमनानी के फोन से दिल खुश हो जाता है।बाकी खेरियत 
 
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