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Sunday, August 26, 2012

26-08-2012

बीते छ: दिन 
काम की अधिकता। फील्ड का कड़वा अनुभव। साईबर केफे का औपचारिक इंटरनेट। बारीश के बाद डरते हुए घर से निकली धूप । एकांत में अचानक अपने फेंस से मुलाक़ात का आनंद। अज़ीज़ प्रकाश खत्री जी और भगवती लाल सालवी जैसे जो प्रकृति पर लट्टू किस्म के साथियों के साथ सामलाती रूप से दुर्ग भ्रमण का आनंद। डूबने की हद तक प्रकृति का सामूहिक दर्शन। खराश भरे गले के साथ रफ्ता रफ्ता कटता हुआ जीवन।ढक्कन की नाप के हिसाब से गले में उतरती हुयी दवाइयां और कई परिचितों की संख्या के हिसाब से दुगने-तिगुने नुस्के। आहिस्ते-आहिस्ते ठीक होकर साथ देता हुआ गला।

सैनिक स्कूल में एक शाम रागदारी के संग।आगरा-ग्वालियर घराने की गायिका मंझुषा पाटिल के उम्दा गायन से सराबोर शाम। राग सोहनी से शुरू कजरी,भजन,होते हुए राग भैरवी तक का सफ़र। तीन/चार सौ आयोजन सुनने/देखने और करवाने के बाद भी शास्त्रीय ज्ञान के बारे में जीरो पर ठहरा हूँ।आयोजन को लेकर बेताबी से भागीदारी का प्रबल हिमायती हूँ।अरसे बाद सार्वजनिक कार्यक्रम में तयशुदा सञ्चालन का आत्मिक सुख। ठीक होते ही काम लगे मजूर की तरह गला।नितांत गंभीर किस्म के गायन को भी आसानी से पचाते हुए नवरसिक साथियों का हुजूम। व्यवस्थाओं संबंधी अरुचिकर मगर ज़रूरी फोन-कोल्स के बीच गायन-वादन और नर्तन।

बंद हुए बेसिक फोन से उपजे वे तमाम चक्कर जो सरकारी फोन कंपनी के ऑफिस के इर्ग-गिर्द काटे गए। फुले हुए थोबड़े के लोग। सिफारिशों के बाद निकलता हल। औपचारिक इंतज़ार। टेंशन में रमा दिमाग। बिल-वाउचर-चेक-बेंक-सर्किट हाउस-डिनर-रेस्टोरेंट-टेक्सी जैसे शब्दावलियों से बारबार पाला। व्यस्तता की हद के बीच निस्वार्थ भाव से की आंशिक सेवा का सुख। एक बड़े  कलाकार के शहर में आने और दो आयोजन में शिरकत कर चले जाने के बाद उनसे नहीं मिल पाने का अफसोस। एक नामचीन तबला वादक मिथिलेश कुमार झा दूजे पंडित तरुण भट्टाचार्य। 

सरकारी स्कूलों में कथक नृत्य की कक्षाएं। लखनऊ घराने का चिराग मउमाला नायक का चित्तौड़ प्रवास।शास्त्रीय नृत्य के ककहरे से अनजान बच्चों को सीखाने की एक कोशिश। आदत से विलग ऐसे आयोजन के अनुभव जहां रिकोर्ड किये संगीत पर भाव प्रदर्शन हुए।अत्यंत कम संसाधन और वक़्त में पूरे होते आयोजन का सिलसिला।रोज पैदा होती प्रेस विज्ञप्तियां। रोज छपती खबरें। अखबारों में रुचिकर आयोजन का पसर जाना। इस तरह से निष्काम कर्म का असल सुख का फल जाना। और भी बहुत कुछ इन बीते छ: दिन में  

 
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