दोस्तों के बीच
के मस्ती
के आलम
में अचानक
कभी कुछ
महीनों पहले
किये आवेदन
की कोर्स
वाली किताबें
कोरियर वाला
दे जाए
तो सारा
मामला चिंताजनक
हो पड़ता
है।काम की
लम्बी सूचि
में ये
पढ़ने का
सांग और
शामिल हो
जाता है।
थोड़ी सी व्यस्तता
चल रही
है.स्कूल
अभी खुले
ही हैं.आकाशवाणी में
जाना आना
रहता है.स्पिक मैके
की कुछ
अनौपचारिक जिम्मेदारियां भी रहती हैं.
.विचार चलते
रहते हैं.मगर उन्हें
कागज़ आदि
पर उतार
पाना फिलहाल
सभव नहीं
हो पा
रहा.आज
ही कुंवर
रवींद्र की
भेजी 'कल
के लिए'
का अदम
गोंडवी अंक
मिला है.मेरी पसंद
के कवि.कुछ समय
इस अंक
पर गुजारुंगा
मैंने इस महीने
से अपने
सारे ब्लॉग
पर एक
टेग लाइन
लगा दी
है 'कहीं
भी नहीं
छपने लायक
सामग्री यहाँ
मिलेगी'. मतलब
मुझे अहसास
हो गया
है कि
मैं किसी
प्रिंट पत्रिका
में छपने
लायक नहीं
हुआ.अच्छा
हुआ ये
गलतफहमी जल्दी
दूर हो
गयी.'आत्मज्ञान'
जितना जल्दी
हो उतना
ही अच्छा.कहीं छपने
भेजने के
सोगन ले
लिए हैं.बाकी आनंद
आज की शाम
बहुत दिनों
या यों
कह लीजिएगा
सालभर बाद
शहनाई सुनी.उस्ताद बिस्मिल्लाह
खान बहुत
याद आये.मुझे जहां
तक याद
पड़ता है
खान साहेब
को दो
तीन बार
सजीव कोंसर्ट
में सुनने
के बाद
एकाध बार
कभी संजीव-अश्विनी शंकर
जी जैसे
चमकदार और
परिश्रमी युवाओं
को सुना
था. बाकी
कान शहनाई
को तरसते
ही रहे.हाँ आकाशवाणी
में भी
अपनी ड्यूटी
के बहाने
बजाते रहे
हैं.मगर
वहाँ बाकी
कामों की
फेहरिस्त में
ढंग से
सुनना संभव
नहीं हो
सका.