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Friday, June 8, 2012

08-06-2012

कल भोपाल में सपत्निक बड़े तालाब और छोटे तालाब की सेर कर आया. बहुत सा पैदल चलने के बाद भोपाल को समझने का एक छोटा प्रयास कर आया.बड़े अरमानों का सोचा भारत भवन आखिर देख ही लिया.चित्रकला प्रदर्शिनी के साथ ही इन दिनों वहाँ चल रहे रंग आलाप उत्सव के बहाने 'फंदी' करके नाटक का कुछ अंश देख आया.पता लगा आज वहाँ हबीब तनवीर की याद में चल रहे इस आयोजन में आज उन्ही के नया थीएटर ग्रुप का नाटक 'कोणार्क' होगा.बस जाना पक्का हो गया है. बहुत दिनों बाद नाटक देखेंगे.हबीब जी के बहुत से नाटक स्पिक मैके ने मुझे दिखाए.मेरे जीवन की इस राह बार बार स्पिक मैके आ ही जाता है जिसने मुझे हाल ही में आठ दिन तक भारतीय संस्कृति के कई विराट आयोजन उपलब्ध कराये.आज भोपाल का मानव संग्रहालय भी देखने का मन है. देखो कितना पूरा होताहै अपने मन का.
 
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