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Saturday, March 10, 2012

10-03-2012

प्रो.काशीनाथ सिंह का लिखा और केन्द्रीय साहित्य अकादेमी का इस साल का हिन्दी का सम्मान प्राप्त  'रेहन पर रग्घू' उपन्यास  तीन दिन से टुकड़ों में पढ़ता रहा ,आज पूरा हुआ.विचार मंथन हिलोरे मार रहा है.बहुत कुछ सोच रहा हूँ. मगर लिख नहीं सकता.अभी सोचने का आनंद लेने दीजिएगा.आपने इसे नहीं पढ़ा तो आपको आपके पापा-मम्मी की कसम.आपको पाप लगेगा.जल्दी ही पढ़े.साथ ही पढ़ते ही दस लोगो को पढ़ने की कहे नहीं तो आपके घर में कोई भी नुकसान हो सकता है.इसे पढ़ने के बाद मुझे अपने आस-पास उपन्यास का मुख्य केंद्र रघुनाथ ही नज़र आ रहा है. मैं भी रघुनाथ ही हूँ.कई सारे रघुनाथ एक साथ परेशान है. इस विकट समय में इन तमाम रघुनाथ को कुछ करना होगा.



 
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