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Friday, March 2, 2012

02-03-2012

शाम के समय पांच से छ: तक डॉ. कनक जैन और मैं,डॉ. सत्य नारायण व्यास के घर गए.पहले से तय इस संगत में उनके बैठक वाले कमरे पर किताबों वाली टी.टेबल पर ढ़ेर सारी किताबें पसरी पड़ी थी.नामवर सिंह,शम्भुनाथ,अदम गोंडवी,मीना कुमारी,राजेश कुमार,फैज़,रेहन पर रग्घू हर तरह की किताबें शब्द कोष से लेकर भाषा और आलोचना की किताबें.चंद्रकांत देवताले से लेकर महात्मा गांधी,होमर से लेकर अज्ञेय तक.सब कुछ वहाँ था.हम देर तक बातों के बीच में किताबें सूंघते रहे.बातें भी हर तरह की.इतिहास,साहित्य और संस्कृति के साथ ही तमाम विचारधाराओं के बारे में गुजरते हुए मानवतावादी विचारधारा की स्थापना पर आकर ही बार बार ठहरते.डॉ. रेणु व्यास(हमारी रेणु दीदी) और कनक भैया के बीच अलग चर्चाएँ चल रही थी तो उसी दौरान कभी अगले दो दिन बाद के आयोजन को लेकर मोटे तौर पर खाका भी खींचा गया.'बनास जन' के प्रवेशांक के साथ ही डॉ. माधव हाडा की उदयपुर में नियुक्ति,पल्लव की दिल्ली और विश्व पुस्तक मेले के अनुभव हमारे बातों के विषय बनत रहे.हमने अंत में कुछ किताबों के साथ 'बनास जन' के अंक की प्रतियां साथ लेते हुए घर की तरफ का रास्ता नापा.कुछ निष्कर्ष: आदमी को किसी आदमी के बजाय उसके कृतित्व से ही प्रभावित होना चाहिए,कोई भी विचारधारा का कट्टरपन खतरनाक साबित होता है.बिना कम्यूनिस्ट हुए भी प्रगतिशील हुआ जा सकता और बिना संघी हुए भी हिन्दुतावादी.सबसे बड़ी विचारधारा मानववादी होना है.इन सभी विचारों की खिचड़ी के बीच आज हमने डॉ. व्यास के कहने पर पहली बार सामूहिक रूप से ब्लेक टी. का पान किया.मम्मीजी ने अंगूर परोसने के साथ चाय बनाई.समय बहुत तेजी से कट गया.मुद्दे एक एक कर पैदा होते जा रहे थे. हम इस तरह अपने दूजे ज़रूरी कामों को ध्यान कर इस संगत से भूखे ही उठ गए.
 
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