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Friday, February 3, 2012

03-02-2012

कल मन:स्थिति के पटरी पर नहीं रहने से डायरी लिखना संभव नहीं हुआ.आज के दिन के खाते में लिखने लायक शाम बची थी.सुबह आए फोन से मैं शाम के चार बजे आधे घंटे के लिए नगर के शिक्षाविद और विचारवान आदमी डॉ. ए.एल.जैन के घर था. मेरे पर उनका बड़ा मन है.स्पिक मैके आन्दोलन के प्रति मेरी कम होती रूचि और दूजी व्यस्तता के चलते वे थोड़े नाराज़ थे.बहुत सी बातें हुई.पिछली नाराज़गी सफाचट हो गयी.अपने बीते दिन के वाकये सुनाने लगे,पाली कोलेज में एक समारोह में छात्र राजनीति के इस दौर पर दीए भाषण पर हुई बयानबाजी हो या उनके एक स्नेहिल चेले के खुतूत के वाकये ,उनके मूंह से सब निकल पड़े.हाल के दिनों में एक कोलेज में उनके उदबोधन पर उपस्थित छात्र शक्ति के अनुभव भी उन्होंने खुल कर बताए.मेरी नज़र में वे सपाट बयानी के लिए जाने जाते हैं.मुझे याद है एक समय था जब मैं उनसे पहली बार साल दो हज़ार दो के नवम्बर में मिला था,उनके सामने गिग्गी बंद जाती थी और अब है कि अनुशाषित होकर हर बात पर अपनी बात रखता हूँ.

शाम हुई इस संगत में वे इस दौर के खतरनाक होने की बार बार याद दिलाते हुए ,मुझे बहुत ध्यान से बोलने,रहने और संगत करने के गुर सिखा रहे थे.उन्होंने मेरे बनाए एक लेटर को आधे घंटे तक ध्यान पूर्वक संपादित किया .आखिर में देखा की पूरा ख़त ही बदल गया.मगर हम दोनों ने किसी बात का बुरा माने बगैर आगामी बैठक के अच्छे आयोजन के लिए ख़त को अंतिम रूप दिया,जिसे लेकर वो सांगत हुई थी.हर बड़े-छोटे काम को बारीकी से करते हुए मैंने उन्हें कई बार देखा और उनकी इसी आदत से ये मेरा फिर से परिचय था.इस तरह इस बार भी मैंने  उनसे बिना कहे उनके जीवनवृत से बहुत से नज़रिए सीख कर चुरा ही लिए.

उन्होंने विचारधाराओं के फेर में उलझे अपने शिष्यों के किस्से भी कहे और आखिर में इन फेरों से बचे रहते हुए श्रेष्ठ पढ़ने को प्रेरित करते रहे.बातों ही बातों में उन्होंने कहा कि किताबें लिखने से ही क्रान्ति आ जाती तो कभी की आ जाती.अन्ना के आन्दोलन के साथ ही उन्होंने जे.पी. के आन्दोलन के समय के किस्से भी सुनाए.उन्होंने समय के हर पक्ष को बहुत करीब से देखा था और एक चाय पर ख़तम होती इस शाम वे उसका बहुत सा हिस्सा मुझमें उंडेल रहे थे.जयपुर में विवादों के साथ पूरा हुआ साहित्य सम्मलेन भी बहुत सी टिक्का टिप्पणियों के साथ आज की बातचीत के हिस्से में शामिल हो गया. उन्होंने मुझे हमेशा किसी भी राजनैतिक विचारधारा से तटस्थ रहते जीवन को ठीक दिशा में ले जाने  के प्रति संवेदनशील रहने को चेताया.बातें ख़तम होने को कहाँ तैयार थी. बहुत से मुद्दे थे हमारे पास बतियाने को.आखिर कर उन्होंने ने ओशो की एक किताब (नई क्रान्ति की रूपरेखा)थमाते हुए  कुछ धरम-ध्यान की किताबें पत्नी नंदिनी के लिए भी दी.जल्द ही मिलने के इशारे के साथ हम बिछड़े.हाँ एक बात और कि उनकी आदत का अहम् हिस्सा होने से उन्होंने मुझे अपने घर-परिवार की कुशल पूछना ज़रूरी समझा.
 
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