Loading...
Monday, December 9, 2013

09-12-2013

दिनों बाद लगा हड़माला(ठिकरिया) की खबर आपको दूं. एक कारण यह भी कि हम इस अंधी दौड़ में गाँवों को तो भुला ही बैठे हैं.मैं भी आपमें ही शामिल हूँ कोई विलग नहीं।बस दो वजहों से गांव याद आ पड़ते हैं:एक मेरी नौकरी गांव में ठहरी, दूजा मेरी जड़ें और माँ-पिताजी गांव में रहते हैं.ये दो वजहें ना हों तो शायद इस बाज़ार की गिरफ्त में मैं भी गाँव नाम की चिड़ियाँ भूल जाऊं।चुनावों के नतीजों के लिए हड़माला के बच्चे पूछने पर बोले फूल जीत गया है.बाकी कौन-क्या-कुछ इतर से वे बेखबर हैं.सब बच्चे टीवी देखते हैं उन्हें यह भी मालुम है कौन बाबा किस केस में फंस गया है.उन्हें और भी बहुत कुछ मालुम है गोया टम्मा का गौना अगले दितवार को होगा,लापसी और दाल-बाटी बनेगी।गम्भीरी नदी में पानी अच्छे से बह रहा है जहां नहाना-तैरना सुखद अनुभव है.उन्हें मालुम है कि गम्भीरी बाँध की साल में चार बार आने वाली नहर का दूसरा फेरा इन दिनों चल रहा है.दुःख यह भी है कि बड़ी नहर उनके गांव के पास से ही गुज़र जाती है मगर उनके लिए एक तंग नहर तो आती ही है.नहर में कूदने-फुदकने की मस्ती के बीच वे स्कूल की घंटी से बेखबर हैं.वे जानते हैं गांव में ही पहला आरसीसी वाला मकान माड़साब का बन रहा है.वे यह बात नहीं भूले हैं कि इसी शनि को वेणीराम जी की तरफ से कास्या बावजी के यहाँ प्रसादी होगी।ट्रेक्टर में आना-जाना फ्री-फंट में रहेगा।बकरा भी कटेगा।

बाहर की खबर यह है कि पास के ठिकरिया स्कूल में छटी से आठवीं में दाखिला लेने वाले नगजीराम,राम लाल,मनोहर,मुकेश के अलावा बाकी के छोरे अब स्कूल कभी-कभार ही जाते हैं.जो स्कूल से दूर हैं वे तम्बाकू खाते हैं,पत्थर खोदते हैं.दानकी(मजदूरी ) जाते हैं.हाँ पिंकी और अनिता अभी जा रही है शायद लेपटॉप मिलने तक जाएगी।एक कृष्णा थी जो आठवीं के बाद मिले टेबलेट के बाद भी नोमी में भर्ती नहीं हुई।गज़ब है.अरे हाँ इसी सप्ताह चार छोरियों के कपड़े, पायजब, अंगूठी आयी.उनमें से दो तो मेरे स्कूल की छात्राएं है.तभी से पहने-पहने इठलाए फिर रही हैं.उन्होंने उनके लिए तय किए छोरों की शक्लें तक नहीं देखी। एकदम बेपरवाह और फकीरी की ज़िंदगी।इधर सीमा बीते पंद्रह दिन से स्कूल नहीं आयी.पता चला उसके पिताजी उसे अपने साथ ले गए.असल में सीमा अपने ननिहाल में रहते हुए हमारे यहाँ दाखिल है.यह भी सुना की सीमा का पिता उसे अब अपने पास रखकर पढ़ाना चाहता है ताकि जात-बिरादरी में लड़कियों की कमी के चलते सीमा की सगाई के समय मिलने वाली मोटी रकम से खुद के लिए दवाई-सवाई का खर्चा निकले।सबकुछ गज़ब की श्रेणी में जाता हुआ है ना?

कुछ और गज़ब हो जाए गोया हेमराज डेढ़ महीने से गायब है पता चला उसकी बड़ी बहिन पुष्पा के ससुराल गया, उसके हाल हुए लडके को रखता/सम्भालता है.पुष्पा और उसका धणी मजदूरी करते हैं.जाहिर है माँ-पिताजी से अलग रहते हैं.नवजात को पाले कौन? पोतड़े कौन बदले? दूध पिलाए कौन ? खुद पाले तो कमाए कौन? अजीब मुश्किलें हैं.मक्की काटने तक का कहके हेमराज को ले गए उसके जियाजी अब कह रहे हैं गुड्डू बड़ा होगा तभी हेमराज आएगा। हेमराज का बड़ा भाई सुनील बकरियों में ही इतना रम गया है कि शायद महीनेभर पहले सीखाया सन्डे-मंडे और पार्ट्स ऑफ़ द बॉडी तो पक्का भूल गया होगा।भेरी अपनी छुटकी को रखने में ही दस साल की हो गयी , इधर हाजरी में भेरी केवल नाम की बची हुई है.

वैसे पोषाहार है तो कईयों जी अटका है.पहली कक्षा का फ़ोकरू आता है अपने से साथ तीन छोटे भी ले आता है.परिवार के झगड़ों के कारण भारती अपने ननिहाल है.संतरा को एक महीने से कह रहे हैं मगर उसके पिताजी रोज आजकल करके अभी तक भी यूनिफॉर्म सरीखा कुछ और कॉपियों सरीखी कुछ सामग्री नहीं ला पाये।एक दो महीने और ऐसा ही चला तो वो बिना लिखे-पढ़े पहली से दूसरी में फलांग जाएगी।मधू, सुमन और पूजा अब बड़ी हो गयी है.जिम्मेदार और जवाबदार।शिवा अपनी माँ के साथ ननिहाल चला गया.सुना है अपनी बकरियां भी साथ ले गया.बाद में फिर खोद-खोद के पूछने पर पता चला पिताजी के दारू की आदत के चलते माँ रूठ के गयी है.

इधर हमारे कन्हैया के नानाजी के पास पचास बकरियां है.जितने पैसे बकरे बेचने और दूध से आते हैं घर खर्च के बाद दारू में ख़त्म। कई बारी इतने लड़खड़ाते नज़र आये मानों लकवे के शिकार हों. मैं कहना भूल नहीं जाऊं कि कन्हैया के पास पहले एक कुकड़ा भी था मगर अफसोस एक बिल्ली उसे खा गयी.अंजली के पास बकरी तो नहीं मगर चार कुकडे ज़रूर हैं.उनके रहने के लिए बनी खुब्बियों की साफ़-सफाई अंजली ही करती है.उसे सब पता है कुकड़ी अंडे कब देंगी।अंडे पर कब बैठेगीं ।कुकड़ा कब बोलेगा।कब सोएगा।कब बच्चा देगा।अंडा खरीदने के लिए फेरी वाला कब आएगा।खुले भाव में एक अंडा कितने में बिकेगा।सबकुछ।अंजली भले से जानती है.

इधर माया का नाम स्कूल में नहीं है मगर रोज आती है.एक चन्दा है तो रजिस्टर में नाम लिखवा के आती नहीं है.एक निर्मला है जो शाम में पढ़ने के वक़्त टीवी में गढ़ी रहती है,खबर मिली पिताजी ने केबल खोल टीवी टांड पर रख दी.विद्या-सपना रोज साथ आती और जाती है मगर कुछ दिनों से सपना को सर्दी है.सर्दी तो हीरा लाल को भी है मगर वह अपने सेबड़े सहित रोज वक़्त पर स्कूल में हाजिर हो ही जाता है.एक कंचन है जिसे सजने-धजने से ही फुरसत नहीं मिलती।एक गौरी और नेहा की जोड़ी है जो फुरसत मिलते ही हेण्डपम्प पर नज़र आ जाती है नन्हे हाथों में जग लिए पौधों को सींचने लग जाती है.शायद हड़माला के प्राथमिक स्कूल के सताईस बच्चे पूरे हो गए हैं.गुड मॉर्निंग (हमारे बच्चे कितने ही समझाओं सुबह मिलते वक़्त भी 'गुड मार्निंग' बोलते हैं और शाम में छूती के वक़्त भी 'गुड मॉर्निंग') 
 
TOP