मल्लाह और नदी तीर पर नहाते बच्चों से नज़र बचाकर 'नाव' भी 'घाट' से बतियाने का वक़्त जुटा ही लेती है।एक यात्रा के ख़त्म होने और दूसरी के शुरू के बीच का ये युगल मिलन कितना रोमांचभरा होता है ना?
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आंकड़ों से भरपूर हिन्दी से मेरा खासा परिचय हो रहा है। दिमाग में तिथियाँ,साल और लेखक अपनी अप्रकाशित कृतियों सहित घूम रहे हैं।उदयपुर में अपनी भी 'हिन्दी में नेट' परीक्षा निपट गयी।मेरे लिए 'हिन्दी में नेट' परीक्षा इसी साल दिसंबर में फिर इंतज़ार कर रही है। अबकी बारी तो चल गया,अब लगना ही पड़ेगा।अब सीरियसली पढूंगा।इसे आप 'मसाणिया राग' भी समझ सकते हैं।मेरे चिंतित और शुभचिन्तक मित्रों के लिए बता दूं आज का पेपर इतना भी नहीं 'बिगड़ा' कि 'परिणाम' का इंतज़ार तक ना करे।इसी बीच एक सूचना कि प्रयास संस्थान, चूरू की ओर से प्रतिवर्ष दिया जाने वाला प्रतिष्ठित घासीराम वर्मा साहित्य पुरस्कार वर्ष 2013 के लिए आलोचक-संपादक पल्लव को दिया जाएगा।दिल खुश हुआ।आधार प्रकाशन, पंचकूला से वर्ष 2011 में प्रकाशित उनकी आलोचना पुस्तक ‘कहानी का लोकतंत्र’ के लिए उन्हें यह पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है।
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ईस्कूल खुल गयी
आज।हम टाईम
पर ही
थे।तीन कमरे
की हमारी
'प्राईमरी यूनिवर्सिटी' के तीनों कमरे
का झाड-पोंछ हमने
ही किया
हालांकि बाद
में हमारे
पहली से
पांचवीं तक
के तेईस मेंसे
सत्रह शोधार्थी
भी वहाँ
पहुँच गए
थे।सफाई के
नाम पहला
दिन भी
खूट ही
गया।ये जमावड़ा
तब संभव
हुआ जब
हमने बमुश्किल
ढूंढ कर
स्कूली घन्टी
का टंकारा
बजाया।बस्ती को बेधती घंटी सुन
सब जमा
हुए।पोषाहार भले नहीं आया मगर
माया,अंजली,सुगना से
लेकर भारती,शिवा और
संतरा सब
आ गए।नहीं
आये तो
वे मित्र
जो अपने
ननिहाल में
ही अब
भी ऊँघ
रहे हैं।हालांकि
आज आये
साथियों में
कुछ तो
सौभाग्य से
नहा-धो
के आये
बाकी फंफूद
सने कपड़ों
सहित हमारे
साथ थे।मतलब
हमारे लिए
पढ़ाने के
अलावा भी
बहुत से
उद्देश्य पारने
बाकी हैं।पूरे
समय जमकर
काम किया।आखिर
में जब
नसें तन
गयीं तब
उठे।हो गयी
दिहाड़ी नौकरी
पक्की ।
इधर पूरे रास्ते
देखता गया।खेत
में बीज
डाले जा
चुके थे।गाँव
और रास्ते
पड़ती बस्तियों
के बुजुर्ग,महिलाओं सहित
सभी लोग
सरकारी योजनाओं
के फायदे
लेने पंचायत
में इकठ्ठा
नज़र आये।
पुलियाओं के
नीचे बहते
नदी-नाले
अभी खाली
ही थे।प्याऊ
के धतोल
में नहाते
ग्रामीण भी
दिख ही
गए।
अरे एक बात
और कि
दुर्भाग्य से मेरा डॉक्यूमेंट्री बर्थ
डे आज
ही पड़ता
है।मुझे आज
के दिन
जन्मदिन की
शुभकामनाएं कम ही जचती है।फिर
भी उन
मास्टर जी
का शुक्रिया
जिन्हें मैं
नही जानता।अरे
वही गुरूजी
जिन्होंने मेरा यही नया वाला
डॉक्यूमेंट्री जन्म दिन फॉर्म में
भरके मुझे फिर से 'कागज़ी
माणिक' बनाया।दुपहर
तो गयी
अब शाम
शायद रेडियो
पर गीत
बजाने में
गुजरना चाहती
हैं।