दिनों बाद घर में
शान्ति देख
उस्ताद राशिद
खान का
गाया राग
पुरिया सुन
रहा हूँ।बंदिश
है ''मैं
तो कर
आयी रंगरलियाँ
पिया संग''.
मन में
उत्साह इस
बात का
भी है
कि इसी
महीने कलकत्ता
में राशिद
खान साहेब
को सुनने
का मौक़ा
मिलेगा।यों तो बड़े बड़े फ़नकार
वहाँ आ
रहे हैं।मगर
कुछ को
पहली मर्तबा
सुनूंगा और
देखूंगा।जीवन में खुद के लिए
सात दिन
निकालने के
लिए मेरी
पूरी तैयारी
है।दस दिन
तक मोबाइल,फोन,अखबार,टी वी,इंटरनेट से
मुक्ति।खुद में उतरने का सुनहरा
अवसर।कलकत्ता से लौटते में फिर
बची हुयी
ऊर्जा के
साथ बनारस
की गलियों
और घाटों
में घुमक्कड़ी
के इरादे
मन में
हिलोर रहे
हैं। अगले
दिन के
सूरज उदय
के बाद
से लेकर
नेक्स्ट बारह
दिन के
सूरज उदय
दूसरे शहरों
में होंगे।रविन्द्रनाथ
टेगौर की
धरती से
फिर कबीर
की काशीनाथ
सिंह की
धरती और
आखिर में
मुद्ध की
धरती होते
हुए घर
लौटेंगे। अनुभव
के जीवंत
रिपोर्ट लेकर।
कुछ दिनों
के लिए
अलविदा दोस्तों।मोबाइल
पर मेसेज
से जुड़े
रह सकते
हैं।आश्रम लाईफ में कॉल उठा
पाना संभव
नहीं होगा।
अन्दर जाने
के लिए
बाहरी दुनिया
से एक
कटाव। अगले
एक साल
के लिए
ऊर्जा कमाने
के भाव
से स्फूर्ति
इकठ्ठी करने
जा रहा
हूँ।
--------------------------------
क्या आपने आसमान
से टूटे
और नीच
गिरते तारे
की मनुहार
करता आसमान
देखा है?
और तो
और तारे
की तरफ
से प्रत्यूत्तर
में फिर
आकाश में
जा उसी
परिचित छाती
से चिपकते
देखा है?
आज मैंने
देखा है।तारे
को भी,आसमान को
भी और
चिपकने-सुबकने
को भी।(संवाद हर
बीमारी का
एक इलाज
हो सकता
है।) जीवन
के आसमान
में सालभर
से चिपका
था एक
मित्र तारा,आज अलग
हो गया।इतना
भी सीधा
कहाँ होता
है जीवन?
हाल की
टेड़ बता
रही है
इसका उतार-चढ़ाव।अफसोस,मेरी
दो हथेलियों
को छोड़कर
एक भी
नयी और
परिचित हथेली
अब आंसुओं
को नहीं
पोंछती है।इन तमाम उलझे हुए विचारों के बीच बड़ी बात है कि सांस इत्मीनान से आ-जा रही है।
----------------------------------
बीते दिनों के खाते मित्रों के घरों की दाल-रोटी लिखी। कनक जी के घर से शुरू ये रामलीला राजेन्द्र जी,कानवा जी ,रमेश भैया के यहाँ से होते हुए में लगे हाथ राजेश जी के घर भी निबटा आये।पहली मर्तबा होटल के नाम खर्च में बेहद कमी आयी। इससे और कोई फायदा हो ना हो पत्नी की खुद पावे-क भर बढ़ ही जाएगा। एक आदमी अब फक्र से मित्रों की गुण गा सकता है। एक मित्र,मित्रों के घर से निकली आत्मीयता में कुछ दिनों तक खो सकने की हिम्मत जुटा गया है। दिल खोल इंसानों के बीच रिश्तों के इम्तिहान में सभी दोस्तों के ठीक नंबर से पास की खुशी हैं। भोजन के बहाने लफ्फाजी और एक दुसरे की खींचातानी का आलम बड़ा उम्दा आनंद देता है। निंदा में खोये दोस्त कई बारे के चिल्लाने पर जगह छोड़ते हैं। या तो इसकी भाभी का फोन आयेगा या उसकी भाभी झन्नायेगी।
---------------------------------
इस बीच एक कहानी निबट गयी। स्कूल की क्लोजिंग हो गयी। एक आदमी देर रात तक सोने लग गया। एक घर में चूल्हा जलना भूल गया।एक आँगन में पौछा लगना वार-तेवार बात हो गयी।एक नए रूटीन ने घर में कब्जा जमा लिया।कूलर ने कम पानी के बीच चलने की आदत में खुद को ढाल लिया। एक टी वी चुप रहना सीख गया। इकलौती बाईक के किलोमीटर का काँटा फर्राटे से दौड़ रहा है। घर के हुकुम बदल गए हैं। छत की टंकी अब खाली नहीं होती। वाशिंग मशीन बेकाम के कारण बड़ी उदास है। इसी भगादौड़ी में तीन लोग निम्बाहेड़ा तक दौड़ आये।और तो और एक नास्तिक मंदिर के पाटोत्सव की कमेंट्री में गज़ब ढ़ंग से आस्था लीप आया। नौकरी और पापी पेट के सवाल कुछ जटिल होते हैं। आदमी चलते रास्ते को छोड़ पगडंडियाँ तक अपना लेता है। बदलाव की इस घड़ी में एक लोकल बन्दा रोमिंग में जा बसा है।रोमिंग से एक फोन रोज आता है या फिर एक एसटीडी कॉल जाता है।बड़ा आश्चर्य! पीहर में बहन-बेटी का मन नहीं लग रहा। आदमी बेचारा जो कभी चाह कर भी अपने पीहर नहीं जा सकता है उसके साथ भी पूरी हमदर्दी है।सभी तरह की लपटों के बीच सुकून ढूंढता हुआ एक आदमी आशावादी है इससे बड़ी बात हो नहीं सकती है।
--------------------------------
यात्रा मतलब पेपर सॉप,छोटे साइज के शेम्पू पाउच, तेल शीशी,कांच-कंघा। रोज नहाने और दांत साफ़ करने की आदत पड़ गयी हो तो दातुन ब्रश, टूथपेस्ट, दोनों भांत के साबुन वगैरह। नेपकिन,छोटा चाकू, फ़र्स्ट एड बक्सा, ज़रूरी कपड़े, लूंगी, टावेल रखना नहीं भूलें। खानपीन के शौक़ीन नमकीन, बिस्किट, सकरपारे, चने जैसी चटकारे वाली चीजें साथ लें। आईडी-फाईडी प्रूफ, बटुआ, मोबाइल विद चार्जर, म्यूजिक सुनने के लिहाज से कान में डालने के टूंचक्ये, सफ़र के टिकट, सफ़र की जानकारी सब याद रखना पड़ेगा।हर यात्रा में हर बार।एक भी सामान चूके तो पोलियो हो सकता है।पाठक हित में जारी।
-------------------------------