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Sunday, September 9, 2012

09-09-2012

इधर डायरी अपने लिखे जाने को आतुर है।जब तक डायरी नहीं लिखे गयी तब तक नींद में अँगुलियों की कुदती-फान्दती प्रतीति लिए ही चलता रहा। आखिर अब सुकून भरे रास्ते पर खडा है जीवन। परेशानी भरे दिनों का अवसान। इस बीच संगत में रहे मित्रों की याद का मौसम आ पड़ा।इस बीच विपत्तियों में ख़ास दोस्त ज्यादा करीब आये अनुभव हुए। एक पखवाडा पूरी तरह से खालीपन ओढ़कर चुपचाप गुज़र गया। वो भी बिना बताये। पीछे देखता हूँ आँख बचाकर दिल से निकली फुटकर कविताओं में बची सृजनात्मकता याद आती है। बहुत से खुशनुमा विचार जो मुझे उदास देख दूजे रास्ते पर हो लिए उन्हें मिस करता हूँ।

इस साल के दुसरे भादवे के बीच चित्तौड़ में हरियाली और पानी के सैलाब में बीतती हुयी ज़िंदगी के कम पड़ते दिन अखरते हैं। रामदेवरा जाते यात्रियों के रेले के कम पड़ते जलवों के बीच सड़कों के आजूबाजू पसरा गीले गारे का खतरा आज भी कायम है। इस बीच हिन्दी लेखक सत्यनारायण व्यास का शिक्षक दिवस पर भीलवाड़ा में उदबोधन हुआ। कोलेज में हाल नियुक्त हिन्दी प्रवक्ता डॉ राजेश चौधरी का जनसत्ता अखबार के पेज संख्या छ: के लिए परेशान होना हमारे कनक जैन और राजेन्द्र सिंघवी के बीच चर्चा का विषय बनाता रहा।  डॉ रेनू व्यास का छ: माही जयपुर प्रवास। होशंगाबाद के लेखक अशोक जमनानी जैसे दोस्तों के यदाकदा आते फोन पर घरपरिवार की सब बातें और उनके सलाह-मशवरों में गुज़रते दिन। आकाशवाणी चित्तौड़ के सक्रीय कार्यक्रम अधिकारी योगेश जी कानवा के लगातार प्रेरित करने के बाद अर्धांगिनी डालर उर्फ़ नंदिनी की पहली कहानी 'कमली के बहाने' का प्रसारण हुआ। ब्रेक के बाद फिर डायरी का लेखन की शुरुआत पर दिल से झांकता एक सुकून भरा लम्हा।

इसी बीच जाने कब एक शाम आकाशवाणी में ऐसे गुज़री जहां हमने प्रकाश खत्री जी के संगत में भगवती बाबू के साथ चाय और हिंग वाली दाल सहित नमकीन का आनंद लिया। ऐसे शामें अकादमिक टेस्ट की बातों के साथ ही आपसी करीबियां बढ़ाती हुयी प्रतीत होती हैं।मैं हमेशा खत्री जी के साथ ऐसी फुरसत खरचने के लिए तरसता ही रहा।उनका अधिकाँश सफ़र भगवती बाबू के साथ गुज़रता हुआ देख कभीकभार भगवती भैया से भी ईर्षा हो जाती हैं। स्पिक मेके जैसे आन्दोलन में बिना नाम जताए दिन बीत रहे हैं।यथायोग्य सहयोग के बाद का आनंद सुकून देता है। खैर। आज यहीं तक।
 
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