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Thursday, August 16, 2012

16-08-2012

स्कूल में मास्टर की नौकरी के चलते पंचायत से लड्डू ले जाने, बच्चों में बांटने और झंडा फहराने की प्रतिबद्धता ने तेज़ बारिश के बीच मुझे बुखार और झुकाम की शक्ल में परिणाम दिया.  नासाज तबीयत के साथ कल से ही कुछ चयनित शास्त्रीय धुनों में खोया हूँ.पेरासिटामोल के साथ ये भी सहायक बनी हैं। कल से आज की शाम तक का सफ़र यूंही बिस्तर के इर्द-गिर्द गुज़र गया. कभी मूंह चद्दर से बाहर तो कभी अन्दर रहा होगा शायद इसकी तस्दीक पत्नी ज्यादा अच्छे से कर सकेगी। लगातार बारिश में मध्यांतर की तरह आज खुले मौसम किले पर जाना हुआ.सैंकड़ों आदिवासी और मालवी लोगों के बीच रामदेवरा के यात्रियों का रेला देखा। मेरे प्रिय रतनेश्वर और भीमलत तालाब भर गए. इस बात से ही तसल्ली आए गयी। पूरा किला हरियाली में खोया नज़र आया. इस छोटी सी यात्रा में सपरिवार जाने की खुशी मैं साथ में लपेट कर घर तक ले आया. अक्सर अकेले किले पे भाग जाने के भी खैर अपने आनंद रहे हैं.

माताजी के मंदिर में एक नया लाईट लगा बोर्ड देखा.मेवाड़ विश्वविध्यालय के सौजन्य से बना होने का ज़िक्र किया गया उसमें .कोई नन्द लाल गदिया जी,महंत जी और अब्दुल ज़ब्बार साहेब के फोटो के ऊपर महाराणा प्रताप और मीरा जैसे चित्र छपे थे.बीच में एक कविता ज़ब्बार साहेब की चस्पा थी. तमाम आदिवासी लोग उस अपेक्षाकृत अधिक चमकीले बोर्ड को धोक रहे थे. मैं यहाँ देर तक विचार मग्न रहा.रेले में शामिल लोगों की श्रद्धा से मन अभिभूत हुआ.हम उनके आगे कुछ भी नहीं.

यही कुछ तो था वहाँ
होर्न मारते टेम्पो
फोटो के भाव-ताव में उलझे केमरामेन
तरह-तरह की मुद्राओं के बीच फोटो खिंचाते वे नितांत गरीब  मगर हुलसित मन वाले लोग
भुन्गड़े बेचती औरतें
अपने नन्हे ढ़िबरी-धिबरियों को संभालते बन्दर और बंदरियों के झुण्ड
आड़े-टेड़े खड़े वाहन
बीच बचाव करता विजय स्तम्भ
गीली गीली इमारतें, भरा हुआ गोमुख कुंड
रिपसनी सीढियां, बातूनी नवविवाहित जोड़े
सिरहन दौड़ाती  हवा
शाम होने से जल्दबाजी में तेज कदमों भरे लोग
यही कुछ देखा आज 
 
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