अब तक अबोध
की श्रेणी
में आती
समझ के
धीर-धीरे
जवान होते
हुए आगे
बढ़ते देखना
भी कितना
सुखद पहलू
है.जीवन
में अपने
जानकार और
बिना सींग
पूँछ के
साथियों के
साथ बचे
हुए मगर
नितांत ज़रूरी
विषयों पर
विमर्श करना
और भी
उत्साहवर्धक हो पड़ता है.जीवन
में अभिरुचियों
के हित
वक़्त बचा
लेना और
उसे ठीक
समय पर
खर्च देने
की समझ
आ जाना
भी किस्मत
के हवाले
होता है.कई मर्तबा
अच्छी संगत
का मूल्य
समझे बिना
हम घोंचू
की तरह
ऊंघते रहते
हैं और
मौक़ा हाथ
से रिपस
जाता है.इसी मौहल्ले
में वे
लोग भी
दौड़ रहे
हैं,जिन्हें
कोई जल्दी
नहीं है.असल में
वे वक़्त
की कीमत
समझ उसे
मति से
वापरते हैं.उनके प्रभाव
में आने
से बिगड़ने
का पूरा
खतरा है.
कभी यूं होता
है कि
किसी जानकार
का एक
आग्रह हमें
किसी ख़ास
गहरी चीज़
से वाकिफ
करा देता
है.अच्छी
समझ पैदा
करती और
अन्दर तक
असर करती
हुयी ऐसी
चीजें ही
हम अपनों
से साझा
करते हैं.दिनों तक
वे चीजें
अपने प्रभाव
के साथ
हमारे मन
में कुचन्नियाँ करती रहती है.नेक रास्ते
पर अविराम
चलने के
लोभ में
हम बहुत
अज़ीज़ सी
लगती शक्लों
के साथ
फुरसत ढूँढते
हैं.उनके
साथ वीरानगी
में बतियाने
के मौके
की तलाश
में रहते
हैं.मौक़ा
हमें किसी
खजाने को
लूटने की
कीमत के
बराबर लगता
है.एक
और दीगर
बात कि
यहाँ जब
रुचियाँ ही
मेल खा
जाए तो
अज़ीज़ के
विपरीत लिंगी
होने या
नहीं होने
के इतने
मायने नहीं
रह जाते.
बीते दौर के
रचनाकारों से होकर गुज़रना अतीत
में जाने
के लिए
सबसे सहूलियत
भरा लगता
है.इन
दिनों में
आकाशवाणी के
मंच से
मुझे मिले
साथियों के
साथ का
वक़्त बहुत
कुछ दे
रहा है.योगेश कानवा
जी के
साथ उनके
जीवन अनुभव
सुनना.उनकी
गीतों भरी
कहानियों के
निर्माण प्रक्रिया
से झांकता
हुआ अप्रत्यक्ष
प्रशिक्षण,प्रकाश खत्री जी से
मिली फिल्म
रेनकोट,इजाज़त
के ज़रिये
रिश्तों में
बचती संवेदनाएं
समझ आयी.पेट से
उपजते संगीत
और असरकारक
संवादों की
गहरी साख
मन में
आशियाना बनाती
हुयी अनुभव
हुई.जुलाई में हमने मरी हुयी नदी, आओगे जन तुम साजना के बाद इस महीने दीनू की डायरी का रेडियो रूपांतरण किया.यादगार अनुभव।
घरों से पारिवारिक
जिम्मेदारियों की याद दिलाते हुए
घनघनाते फोन
कॉल्स को
उपेक्षित कर
हम दो
आज की
शाम किले
पर जा
टिके.रतन
सिंह महल
के ठीक
बाहर ही
बने तालाब
की किनोर
पर बैठ
हमउम्र साथी
भगवती लाल
सालवी से
बातें,अनुभव
और सुख-दुःख की
साझेदारी अपनेपन के हद
तक ले
गयी. .कभी
कोलेज की
बातें,कभी
उनके ज़बान
से मुस्कराते
गीत,कभी
आँखों में
आती तैरती
हुए तालाब
की काई,कभी बीच
बचाव खाली
वक़्त देखते
ही मेरी
कवितायेँ आ
कूदती रही.
आदतवश कभी
सेल फोन
से गाते
हुए निकल
पड़ते एस.डी. बर्मन,शमशाद बेगम,गीता दत्त,गुरु दत्त.हरियाली के
नज़दीक दौलत
गड़ते हुए
ये हैं
आज अनुभव.