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Saturday, August 4, 2012

04-08-2012


आकाशवाणी में कभी कभार हमारे योगेश जी कानवा सर रिकोर्डिंग का काम मुझे संभला जाते हैं.ऐसे में मैं फक्र के साथ ही दायित्वबोध से भी भर जाता हूँ.आज ही मेरे तीन वरिष्ठ साथी (आकाशवाणी चित्तौड़ के योग्य वार्ताकार ) के साथ एक घंटा आकाशवाणी में गुजारने का मौक़ा मिला .शाम चार से पांच तक तो रिकोर्डिंग की.बाकी समय दूजा ज़रूरी काम चिमनाराम जी (हमारे दूजे अधिकारी )के साथ निबटाया.पहली रिकोर्डिंग लम्बे समय बाद रेणु व्यास दीदी के लिए की जिन्होंने आज़ादी के आन्दोलन में साहित्यकारों के योगदान विषय पर अपनी दृष्टि ज़ाहिर की.साढ़े नौ मिनट तक पढ़े गए उनके आलेख में उनके विस्तृत पठन-पाठन की आदत वाली झलक साफ़ रूप से मैंने एक बार फिर देखी. मैं उनसे सदैव प्रभावित रहा हूँ. उनकी समालोचकीय दृष्टि खासकर मुझे आकर्षित करती हैं. उनकी सादगी तो खैर आकर्षण रही ही है.उनके बारे में क्या कहूं .एक विज्ञान की स्नातक का इतिहास में स्नातकोत्तर करना फिर हिन्दी साहित्य में दुबारा स्नातकोत्तर  करना इस तरह उनके आकाशी वितान को  खोलता गया.आज भी वे सहकारिता के इलाके में सरकारी महकमें में निरीक्षक होते हुए भी लगातार पढ़ती रहती हैं.अभी भी कोलेज शिक्षा के लिए हिन्दी विषय से प्रयासरत हैं.उनका लम्बा काम दिनकर पर रहा है.उन्हें नहीं कहा यहाँ चुपचाप लिख देता हूँ कि वे बहुआयामी व्यक्तित्व के रूप में हमारे चित्तौड़ की धरोहर है.बहुत विचारशील लेखिका और चयनशील पाठक.




दूजे नंबर पर एक साथ फिर मेरे सहित एक तिकड़ी हमारे स्टूडियो में मौजूद थी. मैं,कनक जैन भैया और राजेन्द्र सिंघवी जी. दोनों साहित्य में डॉक्टरेट. मेरे अलावा दोनों जानकार और ज्ञानशील.  पहले नंबर आया कनक जी का जिन्होंने अपने विषय हिरोशिमा की त्रासदी पर हमारे बीच बहुत नयी  तरह की जानकारी देने की कोशिश की. वार्ता में पूरी तरह से साहित्य और विज्ञान का समिश्रण था.वे भी विज्ञान के स्नातक होने के बाद हिन्दी के ज़रिये साहित्य में आये.आखिर में हमारे राजेन्द्र बाबू का नंबर था.वाणिज्य से बाहरवीं,कला स्नातक,फिर M.A. in Hindi, NET,Ph. Ed.,उनका विषय बड़ा दिल से जुडाव वाला था. गंभीरी और बेडच नदी के किनारे वाला शहर चित्तौड़ जैसे विषय पर केन्द्रित वार्ता में राजेन्द्र जी ने बहुत साफगोई से अतीत के साथ साथ वर्तमान के परिदृश्य को लिखा.राजेन्द्र जी  तो हालांकि वार्ता को  इतिहास के दृष्टिकोण से उठाते मगर वे मूल रूप से साहित्य के ही विद्यार्थी रहे हैं.इसलिए वार्ता में अतीत से थोड़ा शुरू करते हुए उन्होंने वर्तामान को आ पकड़ा फिर उसे ढंग से उकेरा भी.

दोनों अपनी रिकोर्डिंग कराके चल दिए.मैं रहा अंत तक.इस तरह बिना ड्यूटी के भी आकाशवाणी जाना और उसके हित में काम करना नियति का हिस्सा रहा है.

 
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