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Friday, June 22, 2012

22-06-2012

''पहले के ज़माने में जब राजा-महाराजा होते थे कलाकार को अपनी रोजी रोटी की चिंता नहीं करनी पड़ती थी मगर अफसोस वो अपने मन का गा-बजा नहीं सकता था.अब आज के दौर में कलाकार अपने मन का गा-बजा और नाच सकता है मगर उसे अपनी रोजी-रोटी को लेकर बहुत ज्यादा अनिश्चितता दिखाई देती है.हर दौर में कुछ अच्छा और कुछ खराब होता है.''


पंडित रोनू मजुमदार ने एक बातचीत में मुझे चित्तौड़ में कहा.पंडित जी से कई मर्तबा बतलाने का मौक़ा स्पिक मैके  ने दिया है।गज़ब की तपस्या है.उनके परिवार का संगीत से कोई लेना देना नहीं रहा। पारिवारिक माहौल के बिना भी बेहतरीन कलाकार जनमते हैं,ये बात पंडित जी ने सिद्ध कर दी।आज उन्हें जन्मदिन की बधाइयां।संगीत के ज़रिये राष्ट्रीयता फैलाने के लिए हम रोनू जी को हमेशा याद कर सकते हैं।


बात के करने के सादे अंदाज़ में भी अद्भुत तत्व दूजे आदमी के मानस तक पहुंचाने में महारथ हासिल व्यक्तित्व हैं रोनू जी आलाप बजाते वक्त भी बातें करने लग जाते हैं फिर आलाप में लग जाते हैं।पता नहीं लगता।उनके बजाने का रास्ता भी अजब है।बच्चों को तीन मिनट में ही मुठ्ठी में कर लेते हैं भले बच्चे शरारती के बाप हो।अजीब आकर्षण हैं उनमें।
 
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