अचानक मिले एक
दोस्त के
साथ तीन घंटे
का साथ,तमाम चर्चाएँ,हंसी-ठठे,कविता,अनुभव,अतीत बोध
की बातें।शहर
के एक
स्कूल सेन्ट्रल
अकादेमी में
प्रिंसिपल अश्रलेश दशोरा जिनके साथ
मैंने सन
दो हज़ार
से दो
हज़ार दो
तक विद्या
विहार स्कूल
में अध्यापकी
की।मेरे कला
संकाय से
था।वे विज्ञान
से आते
थे।आम धारणा
के मुताबिक़
कला का
अध्यापक बना
मैं जिससे
मेरा मेहनताना
कुछ कम
था।बीते दिन
की बातें
एक एक
कर लीरते
हुए याद
की।घर परिवार
से अलग
लेकर दुनियादारी
तक।इंटरनेट से लेकर शिक्षा जगत
तक।समय के
साथ बदलाव
के इस
दौर में
हिचकोले खाते
आज के
युवाओं के
बारे में
भी तमाम
बातें हुयी।नामचीन
लोगों के
समूहीकरण की
आदतों और
फिर यथासमय
उसके निजी
उपयोग के
हथकन्डो
पर भी हमने चुटकियाँ ली।बाल
बच्चेदार हम
दोनों साथियों
ने बचपन
और स्कूल
जैसे पहचाने
विषय पर
कई सारे
निष्कर्ष निकाले।
आखिर में अपनी
ताज़ा कविता
सुनाई।पुराने मित्र के साथ अचानक
मिले इतने
समय से
बिखालाए हम
दोनों देर
तक
हँसते रहे।गंभीर विषयों के साथ
कई हलके
फुल्के विषय
भी हमारे
लपेटे में
आये।आज तब
बहुत अच्छा
लगा जब मित्र
कई बार
अपने अभिन्न
के हाल
के अपडेट
के प्रति
कितना रूचि
के साथ
सुन रहा
था।मन खिलखिला
जाता है
जब कोई
मन के
दुखड़े-सुखड़े
इत्मीनान से
सुनता है।हम
विचार के
साथ देर
का सफ़र
भी चुटकियों
भरा लगता
है।अजीब बात
ये भी
है कि
ऐसे हमविचार
ढूँढना सालों
से लापता
लोगों को
ढूँढना के
बराबर है।