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Sunday, May 13, 2012

13-05-2012


आज सुबह जब 'उपनिषद् गंगा' का एक भाग देख रहा था आज के परिदृश्य से मिलान करते हुए मैंने बड़ा अचरज पाया कि चाणक्य जैसा दबंग और जानकार गुरु किस कदर चन्द्रगुप्त जैसे अपने राजा को डांट सकता है,तल्ख़ ज़वाब दे सकता है.उसके द्वारा समझाई गयी कई बातों में एक बात कि' शासक का सुख आम आदमी के सुख में निहित है,आम आदमी के लिए चैन की नींद का इंतजाम करने तक स्वामी को सोने का कोई अधिकार नहीं है.साम्राज्य और सुख दो अलग अलग चीजें हैं.ज़रा आप भी आज के राजाओं,गुरुओं,उनके सुखों,आम आदमी की नींद,चैन के बारे में सोचे हो सके तो ये एपिसोड कहीं देखें.

आधा दिन अगले दिन की शाम आकाशवाणी पर हमारे प्रकाश खत्री जी के कहे अनुसार प्रस्तावित एक ही कलाकार कार्यक्रम के लिए संगीतकार नौशाद पर सामग्री जुटाता रहा।अपनी माटी वेबपत्रिका पर विश्व मातृत्व दिवस पर कुछ रचनाएं भी छापी।मगर अपनी माताजी से एक फोन लगा कर बात नहीं की।मुझे सच का पूरा आभास है. कुल मिलाकर मैं भी इसी समय का एक उत्पाद हूँ।मेरा रविवार भी वैसे ही गुज़रा जैसे आम सरकारी नौकर का गुज़रता हो।


दोपहर में होशंगाबाद से अशोक जमनानी का फोन आया बता रहे थे उन्हें इस साल का माधव राव सिंधिया अलंकरण मिल रहा है।इसी छबीस मई को ,वो भी उनके अपने शहर में होने वाले इस सालाना आयोजन में।कितनी अजीब बात है कुछ दिन पहले उनकी दादी गुज़र गए। अब ये खुश खबर।लोग है, दोनों खबरों में से किसी एक खबर को पाकर उन्हें बधाई सन्देश भेज रहे है,कोई फोन घनघना रहे हैं।

खैर उनका दुःख कम करने का भाव बदलने के लिए रख मैंने अपनी हाल की दो कवितायेँ उन्हें सुनाई ।पैंतालीस मिनट बात हुयी  होगी. कुल मिलाकर कविताओं के नाम बीस मिनट।एक 'कीर्ति स्तम्भ' की आत्मकथ्यात्मक शैली में पीड़ा दूसरी 'कुछ देर' फालतू कामों के नाम।कविताओं को सुनते -सुनाते हुए हम बहुत दूर तक चले गए।अपनी माटी की प्रगति पर भी बातें हुयी।काश हमें पता लग पाए,अपनी माटी अपने सफ़र पर कहाँ तक आ सका।
 
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