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Thursday, April 12, 2012

12-04-2012

(1)
कोई भी सम्पादक,लेखकों से अपनी जानपहचान के अलावा सबसे ज्यादा रचना के छपने के बाद उस की प्रतिक्रियाओं को लेकर बहुत सावधान रहता है.फिर चाहे शुक्रवार हो या शनिवार......छपने में लेखकों का ही फ़ायदा नहीं है सम्पादक की इज्ज़त भी दाँव पर रहती है.

(2)
आज पहली बार गुरुद्वारे में जाउंगा........बहुत सी जिज्ञासाओं को कांख में दबाए.........आँखें फाड़ कर .....दिल खोलकर........... जानने के हित बहुत सी बातें.......एक संगत के ज़रिये ...........वो भी गुरुबानी सुनने की संगत......पंजाबी विश्वविद्यालय के प्रो.अलंकार सिंह और साथियों से.............
 
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