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Friday, January 27, 2012

27-01-12

छब्बीस जनवरी का सारा जोश आज छू-मंतर है.जीवन फिर से पटरी पर.गणतंत्र में लिपटी आज़ादी में गरीबी का आनंद कितना भर बचा हुआ अनुभव होता है आप खुद सोच सकते हैं..कमोबेश वही रुक रुक कर आती हुई साँसे.इस तिरसठवें गणतंत्र पर हिन्दी में एम्.ए. करने का मन बनाया.कभी हिन्दी विषय मेरे लिए पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं रहा. जब रहा अनिवार्यत: के नाम से पढ़ते रहे. एच्छिक मतलब पहली बार अपनी इच्छा से चुना हुआ विषय.संस्थान अपने अग्रज साथी पल्लव के कहने पर वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय मतलब कोटा ओपन जिंदाबाद.फ़ीस चार हज़ार साल के. चार पेपर.किताबें आएगी.और भी कुछ बातें साफ़ थी मसलन...पढ़ने की ललक फिर से जागेगी.परीक्षा का दौर फिर आएगा.अब मैं कभी भी सभा/गोष्ठी में नहीं कहूंगा कि ''मैं विशुद्ध रूप से साहित्य का विद्यार्थी नहीं हूँ.''

ये नई पहल मेरे लिए इस पुराने ठप्पे को हटाने भर का बहाना नहीं वरन कई मायनों में जरूरी साबित हो  सकेगा.अनुवादक,दुभाषिए के साथ ही रेडियों में कभी उदघोषक की वेकेंसी की बात में ये नया विषय काम आएगा.अपनी माटी जैसी वेबपत्रिका के सम्पादन सहयोग में कुछ सार्थक हस्तक्षेप भी हो सकेगा.इसी बहाने हिन्दी साहित्य के कई सारे मूल दस्तावेज़ भी पढ़ने में आ जाएंगे.कई नई किताबों से परिचय हो पाएगा.मन में फिलहाल तो पूरी उत्सुकता है फिर देखो समय किस करवट बैठने को उकसाता है.

वैसे छब्बीस जनवरी का दिन भी दो-तीन बाते लिखने के लिहाज से ठीक रहा. शाम के वक्त सैनिक स्कूल में देशभक्ति गीतों पर आधारित नृत्य आयोजन में अपनी सपरिवार शिरकत के नाम रहा, बच्चों के प्रदर्शन से दिल खुश हुआ. संचालक अजय गगरानी का मंच संयोजन बेहतरीन था.हालांकि वहाँ मंच की अपनी परेशानियां साफ़ झांक रहे थी. मगर अजय का ऐसे में डटे रहना बड़ी बात थी.चित्तौड़ जैसे शहर में जब से मैं रह रहा हूँ,मैंने देखा और सुना है कि पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी के मौके पर आकाशवाणी के हमारे बड़े साथी अब्दुल सत्तार और किरण आचार्य ही मंच संचालन कर जिला स्तरीय आयोजन को दिशा देते हैं.ये उनकी मज़बूरी,शौख है या कि फिर सालाना उत्साह ,वो ही अच्छे से बता सकेंगे.हाँ एक बात और सबकी आँखों का तारे अखिलेश श्रीवास्तव नामक व्यक्ति (कालिका ज्ञान केंद्र नाम की संस्था के संचालक कहलाते हैं.)किसी से भी नहीं शरमाते हुए इन आयोजनों में लगातार योगदानकर्ता के रूप में पहचाना जाता रहने वाला नाम है.मुझे उनके नाम का पत्थर ठोकना बेहद ज़रूरी लगता है.हर कदम,हर झांकी में उनकी तत्परता और उत्साह हमें इस लापरवाही और स्वार्थमना लोगों की ज़मात में उन पर संदेह करने को उकसाते हैं.मगर वे है कि देश हित में सतत हैं.
 
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